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पांच प्रदेशों में विधान सभा के चुनाव घोषित कर दिए गए है. सभी राजनैतिक दल अपनी जीत के लिए जी तोड़ मेहनत करते नजर आ रहे है. किन्तु मतदाता हमेशा की भांति उदासीन प्रतीत होता है. पूर्व के चुनावों का अनुभव बताता है की चुनावों में औसतन ५० से ६० फीसदी तक ही मतदान हो पता है. जिनमे तीन या चार प्रत्याशी कड़ी प्रतिस्पर्धा में रहते है और औसतन १५ से २० फीसदी मत पाने वाला व्यक्ति हमारा जनप्रतिनिधि बन जाता है. साधारण सी परीक्षा में भी परीक्षार्थी ३३ फीसदी अंक पाने के बाद ही पास हो पाता है किन्तु चुनावों में १५ फीसदी वोट पाकर ही कोई व्यक्ति पांच वर्ष के लिए हमारा जनप्रतिनिधि बन जाता है. एक ऐसा व्यक्ति जनप्रतिनिधि बन जाता है जिसे क्षेत्र के मात्र १५-२० फीसदी लोग ही पसंद करते है ८०-८५ फीसदी नहीं.
लोकतंत्र में अनेकों अधिकारों के साथ साथ नागरिकों का यह कर्तव्य भी बनता है वे अपना जनप्रतिनिधि चुनने के लिए मतदान अवश्य करे. लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह आवश्यक है की मतदान के प्रतिशत को ६० से बड़ा कर ९० तक पहुचाया जाये. ताकि कम से कम ३५ फीसदी मत पाने वाला अथवा ३५ फीसदी लोगो की पसंद का व्यक्ति क्षेत्र का जनप्रतिनिधि बन पाए. अधिक मतदान के लिए देश के नागरिकों को जागरूक होना होगा और चुनाव आयोग तथा सरकार को भी इसके लिए प्रोत्साहन योजनाये चलानी होंगी तभी मतदान का प्रतिशत बढेगा और हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा.
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