सोचिये-विचारिये
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अभी हाल में परिवार की एक शादी में सम्मलित हुआ. चूँकि परिवार की शादी थी इसलिए व्यवस्था में भी मेरा सहयोग रहा. शुरू से सब कुछ बड़े नजदीक से देखा. करीब चार घंटों तक चलने वाली और सात-आठ सौ मेहमानों की दावत पर लाखों का खर्च मन में कई सवाल छोड़ गया.
– क्या शादियाँ केवल परिवार के लोगों के बीच सादगी किन्तु गरिमा के साथ नहीं होनी चाहिए?
– क्या खाने के अनेकों व्यंजनों के स्थान पर सीमित, स्वादिष्ट और पोष्टिक व्यंजन नहीं बनने चाहिए?
– क्या शादी पर किया गया लाखों का खर्च कम करके शेष धन को वर-वधु के भविष्य के लिए नहीं सुरक्षित करना चाहिए?
– क्या विवाह पर होने वाला लाखों का खर्च ही कन्या भ्रूण हत्या का कारण तो नहीं.
ऐसे और भी अनेक सवाल मन में आये , किन्तु कभी न कभी तो सादगी से विवाह की शुरुआत होगी ऐसा विश्वास है.
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