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भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी की मुसीबतें थमने का नाम नहीं ले रही. ये दीगर है की इस बार मुसीबत खुद उनकी जबान से फिसली है. महान संत और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद की तुलना दाउद इब्राहीम से कर उन्होंने अपनी पार्टी के साथ देश भर का गुस्सा मोल ले लिया है. जैसे तैसे गडकरी ने संघ के अपने संबंधों का इस्तेमाल कर भाजपा अध्यक्ष के अपने दुसरे कार्यकाल का जुगाड़ किया था पर अपनी जबान पर काबू नहीं रख सके. २०१४ के चुनावो में बहुमत पाने का ख्वाब देख रही भाजपा के लिए अब यही बेहतर है की वो गडकरी से नमस्ते कर किसी और लोकप्रिय नेता को अपना अध्यक्ष चुने. पार्टी और देश हित में गडकरी को स्वयं अपना इस्तीफ़ा दे देना चाहिए और दुसरे कार्यकाल की बात भूल कर पूर्व अध्यक्ष के रूप में पार्टी के लिए काम करना चाहिए. कांग्रेस पार्टी के घोटालो और कमरतोड़ महंगाई से त्रस्त देश आगामी चुनावो में भाजपा की और उम्मीद से देख रहा है.भाजपा को देश की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए आवश्यक प्रयास करने चाहिए.
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