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सूचना का अधिकार और राजनैतिक दल

सोचिये-विचारिये
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राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का सूचना आयुक्त का निर्णय सर्वथा उचित और स्वागत योग्य है. अभी यह निर्णय मात्र कुछ राष्ट्रीय दलों के लिए है मगर इसे देश के समस्त राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों पर लागू किया जाना चाहिए. बल्कि सभी राजनैतिक दलों को सी ए जी के दायरे में भी लाया जाना चाहिए .
सूचना आयोग के इस निर्णय पर राजनैतिक दलों के इस तर्क से सहमत नहीं हुआ जा सकता की वे सारी सूचनाए चुनाव आयोग को उपलब्ध करते है, और सारी सूचनाए वहां से प्राप्त की जा सकती है. चुनाव आयोग को ये राजनैतिक दल मात्र चुनाव सम्बन्धी सूचनाए उपलब्ध कराते है, पार्टी की आय और खर्चों से सम्बंधित जानकारियों सहित अनेको जानकारियाँ है जो दलों द्वारा चुनाव आयोग को नहीं दी जाती है.
सूचना आयोग के इस फैसले से राजनैतिक दलों में हडकंप मचा है.राजनैतिक दलों को सूचना आयोग का यह फैसला रास नहीं आया है, किन्तु कोई खुल कर नहीं बोल पा रहा. हो सकता है की सूचना आयोग के इस फैसले के खिलाफ सारी पार्टियाँ लामबंद हो जाये और इसके खिलाफ संसद में कोई कानून पास करा ले. यह कानून वैसे ही पास हो जायेगा जैसे सांसदों के वेतन और भत्ते बढ़ने का कानून ध्वनि मत से पास हो जाता है.
देश का राजनैतिक परिद्रश्य इस समय अत्यंत निराशाजनक है. भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जागरूकता बढ़ी है पर राजनैतिक दल उदासीन है.
जरा सोचिये क्या मुख्य विपक्षी दल भाजपा और वामपंथी दलों को सूचना आयोग के इस निर्णय का स्वागत कर देश की राजनीती को नयी दिशा देने की पहल नहीं करनी चाहिए.

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