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कांग्रेस की मदद या कांग्रेस को मदद

सोचिये-विचारिये
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केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार तो बना ली किन्तु चुनाव नतीजों के बाद से ही जिस प्रकार यह पार्टी हर
मामले पर जनता की राय की बात कर रही है, वह इनकी राजनैतिक अनुभवहीनता को प्रदर्शित करता है. दिल्ली की जनता ने इन्हें अपना प्रतिनिधि
इसलिए चुना है की ये उसके हित में, उसकी ओर से निर्णय ले सके. केजरीवाल का सार्वजानिक रूप से रायशुमारी कर निर्णय लेना न सिर्फ लोकतंत्र
की मूल भावनाओं के खिलाफ है वरन इससे गोपनीयता और सुरक्षा का गंभीर संकट भी खड़ा हो सकता है.
दिल्ली के आलावा देश में इस समय कांग्रेस विरोधी एक लहर चल रही है. आने वाले लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी अपनी उपस्तिथि दर्ज करना चाहती है. जबकि वास्तविकता यह है की आम आदमी पार्टी अभी लोक सभा चुनावों के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है. यह पार्टी कुछ ही राज्यों में अपनी पहुँच बना सकी है. ऐसे में आधी अधूरी तय्यारी के साथ लोकसभा चुनावों में उतर कर आम आदमी पार्टी एक त्रिशंकु लोकसभा को जनम दे सकती है. जिसका निश्चित रूप से फायदा क्षेत्रीय दल उठायेंगे और हो सकता है की देश को संकीर्ण विचारों वाली छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों की एक अस्थिर सरकार मिले, जिसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन प्राप्त होगा. ऐसे में यह कहा जा सकता है की केजरीवाल की आम आदमी पार्टी न सिर्फ कांग्रेस की मदद ले रही है वरन अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को मदद दे भी रही है.
आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल शुरू से कहते आये है की उनकी पार्टी न तो कांग्रेस से मदद लेगी और न ही उसे समर्थन देगी. किन्तु यहाँ तो उनके कथन का बिलकुल उल्टा हो रहा है, कांग्रेस से मदद ली भी जा रही है और कांग्रेस को मदद दी भी जा रही है.

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