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१६ वीं लोकसभा में कुछ दिन पिछली सीटों पर ऊंघते हुए और कुछ दिन विलायत में छुट्टी मानाने के बाद कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी को लगा की बहुत हुआ अब कुछ कर दिखाने का समय है, अब गुस्सा दिखने का समय है. और फिर बिलकुल हिंदी फिल्म के हीरो की तरह साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर राहुल गाँधी ने संसद में एंग्री यंग मेन के रूप में एंट्री ली. वे अपनी कुर्सी छोड़ कर उठ खड़े हुए और अध्यक्ष के आसन तक पहुँच गए. संसद के बाहर भी पत्रकारों को बड़े तैश में साक्षात्कार दिया. ये सब कुछ ऐसे चला मानो किसी हिंदी फिल्म की लिखी हुई स्क्रिप्ट पर किसी मंझे हुए हीरो ने बेहतरीन शॉट दिया हो. कांग्रेसी तो अपने नेता के इस रोल पर निहाल हो गए. लगा मानो कांग्रेस ने लोकसभा ही जीत ली हो.
राहुल गाँधी कांग्रेस के ऐसे नेता है जिन्हें यह अभय प्राप्त है की यदि कांग्रेस को कहीं भी कोई भी सफलता मिले तो उसका श्रेय राहुल जी को और कहीं भी कोई भी हार हो तो वो पार्टी की सामूहिक जिम्मेदारी. पता नहीं राहुल जी को कांग्रेस पार्टी का एकमात्र, सर्वमान्य और सर्वस्वीकार्य नेता मानने के बाद भी कांग्रेस जनों ने उन्हें लोक सभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता क्यों नहीं चुना. शायद इसका जबाब भी आने वाले समय में किसी पूर्व कांग्रेसी की कोई किताब ही देगी !!!!!!!
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