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उत्तर प्रदेश में लोकसभा की ९० फीसदी सीटें जीतने के बाद हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी ११ में से मात्र तीन सीटें ही जीत सकी. निश्चित रूप से यह समय भारतीय जनता पार्टी को आत्म मंथन का समय है. किन्तु वे ऐसा करना चाहें तब. उत्तर प्रदेश में ऐसा देखा गया है की भारतीय जनता पार्टी के नेता मामूली विजय मिलने के बाद ही आत्ममुग्ध हो जाते है. फिर लोकसभा में तो बहुत बड़ी और अप्रत्याशित जीत मिली थी ऐसे में भाजपाइयों का सातवें की जगह नवें आसमान पर पहुचना स्वाभाविक ही था. जीते हुए सांसद अपने आपको महाराजा समझने लग गए और आम नागरिक तो छोडिये समर्पित कार्यकर्ताओं की भी उपेक्षा करने लगे. छोटे से काम पर भी कार्यकर्ताओं को आदर्शों का पाठ पढ़ाने लग गए. चुनावों के दौरान समर्पित कार्यकर्ता साथ घूमता था किन्तु चुनाव में जीत के बाद नाते रिश्तेदार और चापलूस नजदीकी हो गए. अब जब आम जनता और कार्यकर्ताओं ने इन सांसदों का व्यव्हार देखा तो मोहभंग होना स्वाभाविक ही था.
ये तो हुई विजयी प्रत्याशियों की बात. प्रदेश का नेतृत्व भी इन उपचुनावों में भाजपा की लुटिया डुबोने को कम जिम्मेदार नहीं है. रिटायर होने की उम्र वाले नेताओं के हाथ में प्रदेश की जिम्मेदारी है. एक भी नेता ऐसा नहीं जो सर्वस्वीकार्य हो और जिसे जनता तो दूर कार्यकर्ता अपना नेता मानते हों. सारे के सारे नेता परंपरागत शैली के नेता है. प्रदेश नेतृत्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की घोर उपेक्षा लम्बे समय से की जा रही है. एक भी नेता ऐसा नहीं दीखता जो आधुनिक परिवेश का विकास पसंद और तकनीक का जानकर नजर आता हो. प्रतीत होता है की भाजपा अब भी उत्तर प्रदेश में राम मंदिर और हिंदुत्व के सहारे है. प्रदेश भाजपाइयों को अब भी समझ नहीं आता की सारी दुनियां की तरह उत्तर प्रदेश का नागरिक भी विकास, पर्याप्त बिजली, अच्छी सड़कें, उद्योग और रोजगार चाहता है. ये सारे मुद्दे इन उपचुनावों में भाजपा ने भुला दिए. उसे याद रहे कट्टर हिंदूवादी छवि के नेता योगी आदित्यनाथ और लव जिहाद. समझ में नहीं आता की भारतीय जनता पार्टी इतनी जल्दी कैसे भूल गयी की लोकसभा का चुनाव मोदी ने विकास, उद्योग, रोजगार, बिजली, स्वच्छ पेयजल और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीता था ना की मंदिर मस्जिद और लव जिहाद पर. मोदी ने देश में कांग्रेस सरकार की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार को बखूबी भुनाया किन्तु प्रदेश भाजपा के नेता अखिलेश सरकार की नाकामियों से लाभ नहीं उठा सके. भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इन उपचुनावों के नतीजों से सबक लेते हुए प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का पुनर्गठन कर युवा और विकास की बातें करने वाले नेताओं को आगे लाकर नए सिरे से २०१७ के विधानसभा चुनावों की तय्यारी में जुट जाना चाहिए. ये समय की मांग है की प्रदेश भाजपा की कमेटी में आमूलचूल परिवर्तन किया जाये.
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