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उत्तर प्रदेश की राजनीती में चल रहे समाजवादी दंगल में अन्य विपक्षी दलों की उत्तेजना चरम पर है, समाजवादी कार्यकर्ता सहमा हुआ है, और रेफरी की भूमिका में चुनाव आयोग विचारमग्न है. रही बात जनता जनार्दन की, सो वो तो “कोई नृप होऊ हमें का हानि” की विचारधारा को मानने वाली है और इस दंगल का आनंद लेती हुई मस्त है.
उत्तर प्रदेश के इस समाजवादी दंगल पर अलग अलग लोगों की अलग अलग राय हैं, कुछ तो इस दंगल को नूरा कुश्ती बताते हुए अंत में सब एक हो जाने की बात कह रहे हैं. कुछ के विचार में पुराने जमाने की राजनीती करने वाले मुलायम सिंह और शिव पाल को अखिलेश की लोकप्रियता हजम ना कर पाने का परिणाम बता रहे हैं. कुछ की निगाह में कोई बाहरी व्यक्ति इस झगडे की जड़ है तो कुछ घर के ही नेता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
अब इस झगडे की जड़ कोई भी हो समाजवादी सत्ता का यह दंगल प्रदेश की जनता के लिए रोचक बना हुआ है. यह दंगल भी तब लड़ा जा रहा है जब पिता-पुत्र दोनों ही दावे से यह नहीं कह सकते की सत्ता मिलेगी या नहीं. अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है और जनता जनार्दन उत्सुकता से चुनाव आयोग के निर्णय पर निगाह लगाये है की समाजवादी साईकिल किसे मिलती है.
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