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रविवार 19 फरवरी को उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का चुनाव संपन्न हो गया. अभी भी चार चरण का चुनाव होना बाकि है. उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में इस बार का चुनाव कार्यक्रम दो महीने से भी अधिक समय तक चलेगा. इसमें सबसे अधिक समय उत्तर प्रदेश में ही लग रहा है. यह चुनाव चार चरणों में भी आसानी से कराये जा सकते थे.
प्रश्न यह उठता है की उत्तर प्रदेश की चार सौ तीन विधानसभा सीटों के चुनाव को सात हिस्सों में क्यों बांटा गया?
क्या इस प्रदेश के नागरिक इतने हिंसक है की चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की आवश्यकता है?
क्या प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर चुनाव आयोग को पूर्ण भरोसा नहीं था?
क्या एक बार में सौ विधान सभाओं में चुनाव करने लायक वोटिंग मशीने उपलब्ध नहीं थी?
इन सबसे ऊपर एक और यक्ष प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है की कुछ राजनैतिक दल जिनके पास एक या दो ही स्टार प्रचारक हैं उनकी सहूलियत के लिए ये चुनाव सात चरणों में कराये जा रहे हैं.
अवश्य ही इन प्रश्नों पर विचार कर भविष्य के लिए इनका हल खोजा जाना चाहिए क्योंकि चुनाव के इन दो महीनों में अनेक प्रकार की पाबंदियां भी लगती है जिनका जम कर दुरूपयोग किया जाता है और पीड़ित प्रदेश का छोटा व्यापारी और आम नागरिक ही होता है.
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